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इस बार हम आपके लिए लाए हैं दस नई थीम और उनके मुताबिक दस शानदार जगहें। आखिर जब गर्मियों की छुट्टियां लंबी हैं तो हमारे आइडिया क्यों खत्म हो जाएं। हमारे आसपास की प्रकृति के रंग इतने विविध हैं तो भला वे रंग हमारे सैर-सपाटे में भी तो झलकने चाहिए। आइए चले कुछ और यात्राओं पर-


हिमालय: बिनसर


सफेद चोटियों का यह बेमिसाल नजारा

कुमाऊं के हिमालयी इलाके के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है बिनसर। नैनीताल से महज 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस जगह की ऊंचाई समुद्र तल से 2420 मीटर है। हिमालय का जो नजारा यहां से देखने को मिलता है, वह शायद कुमाऊं में कहीं और से नहीं मिलेगा। सामने फैली वादी और उसके उस पार बाएं से दाएं नजरें घुमाओ तो एक के बाद एक हिमालय की चोटियो को नयनाभिराम, अबाधित दृश्य।


 
चौखंबा से शुरू होकर त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा कोट, शिवलिंग और पंचाचूली की पांच चोटियों की अविराम श्रृंखला आपका मन मोह लेती है। और अगर मौसम खुला हो और धूप निकली हो तो आप यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री तक को निहार सकते हैं। सवेरे सूरज की पहली किरण से लेकर सूर्यास्त तक इन चोटियों के बदलते रंग आपको इन्हें अपलक निहारने के लिए मजबूर कर देंगे। यहां से मन न भरे तो आप थोड़ा और ऊपर जाकर बिनसर हिल या झंडी धार से अपने नजारे को और विस्तार दे सकते हैं। बिनसर ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए भी स्वर्ग है। चीड़ व बुरांश के जंगलों से लदी पहाड़ियों में कई पहाड़ी रास्ते निकलते हैं। गल का यह इलाका बिनसर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के तहत आता है। इस अभयारण्य में कई दुर्लभ जानवर, पक्षी, तितलियां और जंगली फूल देखने को मिल जाते हैं। बिनसर से अल्मोड़ा लगभग तीस किलोमीटर दूर है। यहां से 35 किलोमीटर दूर जागेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर हैं। बिनसर के नजदीक गणनाथ मंदिर भी है। यहां खली एस्टेट भी देखा जा सकता है जहां कभी यहां के तत्कालीन राजाओं का महल हुआ करता था।
 
कैसे जाएं: बिनसर के लिए सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। वहां से अल्मोड़ा के रास्ते या नैनीताल के रास्ते सड़क मार्ग से बिनसर आया जा सकता है।  काठगोदाम के लिए दिल्ली व लखनऊ से ट्रेनें हैं। सबसे निकट का हवाई अड्डा पंतनगर है।


सफारी: गिर

जंगल के राजा की मांद में

गुजरात में जूनागढ़ व अमरेली जिलों में फैला गिर नेशनल पार्क भारत में एशियाई शेरों का एकमात्र गढ़ है। यहां के अलावा भारत में जंगल में कहीं ओर शेर नहीं पाए जाते। शेर की गिनती उन जानवरों में होती है जो लुप्त होने का खतरा झेल रहे हैं। इस बात की कोशिश काफी समय से हो रही थी कि गिर के शेरों को कहीं ओर भी बसाया जाए ताकि गिर में  कोई आफत आए तो उससे सारे शेर खत्म न हो जाएं।


 हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गिर से कुछ शेरों को मध्य प्रदेश में पालपुर कुनो नेशनल पार्क भेजने का फैसला किया है। इससे एशियाई शेरों को भारत में दूसरा घर मिल जाएगा। जब तक यह नहीं होता, शेरों को देखने के लिए भारत में गिर ही एकमात्र जगह है। लगभग ढाई सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले गिर नेशनल पार्क में लगभग चार सौ शेर हैं। बाघ और अन्य बड़ी बिल्लियों के उलट शेर इंसान की मौजूदगी से ज्यादा प्रभावित नहीं होते। शेरों के इंसानी बस्तियों के आसपास रहने की भी घटनाएं देखी जाती रही हैं।

                                                     शेर बाघ की तरह शर्मिला भी नहीं होता, इसलिए किसी टाइगर रिजर्व में जहां बाघ को देख पाना बड़ा मुश्किल होता है, वहीं गिर में शेरों को अच्छी तादाद में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। मार्च से मई तक का समय शेरों को देखने के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि तब वे पानी के लिए अक्सर बाहर दिख जाते हैं। गिर में आम तौर पर तीन सफारी होती हैं- सवेरे 6.30 बजे, सवेरे 9 बजे और दोपहर में 3 बजे। लेकिन सवेरे की पहली सफारी शेरों को देखने के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि तब शेर सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। सफारी के लिए वाहनों का परमिट लिया जाना होता है। लेकिन सीजन के समय होटल व सफारी, दोनों की बुकिंग पहले करा सकें तो बेहतर होगा। वरना लंबी कतार झेलनी पड़ सकती है। गिर को लेकर शेरों की बात इतनी हो जाती है कि वहां के पक्षियों की बात ही नहीं हो पाती जबकि जाने-माने पक्षी प्रेमी सालिम अली ने कहा था कि गिर में अगर शेर नहीं होते तो वह देश के सबसे खूबसूरत पक्षी अभयारण्यों में से एक होता।

 
कैसे जाएं: गिर के सबसे निकट का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अहमदाबाद का है। गिर यहां से 390 किलोमीटर दूर है। मुंबई से दीव (दमन) हवाई अड्डे के लिए भी उड़ान है। वहां से गिर 112 किलोमीटर है। अहमदाबाद से गिर के सड़क सफर में सात से आठ घंटे का वक्त लग जाता है। गिर के निकट का बड़ा रेलवे स्टेशन  राजकोट है। राजकोट से गिर 164 किलोमीटर दूर है और इस सफर में तीन से चार घंटे का वक्त लग जाता है। इसके अलावा ट्रेन से गिर से 60 किलोमीटर दूर जूनागढ़ और 40 किलोमीटर दूर वेरावल भी जाया जा सकता है।


फूड: अमृतसर

शुरुआत गुरु के लंगर से

आम तौर पर अमृतसर में तीन तरह के सैलानी जाते हैं- काम-धंधे वाले, धार्मिक (स्वर्ण मंदिर के लिए) और इतिहास प्रेमी (वाघा बॉर्डर व जलियांवाला बाग के लिए)। लेकिन इसमें एक चौथी फेहरिस्त उन सैलानियों की भी जोड़ी जा सकती है जो अमृतसर स्वाद के लिए जाते हैं। पंजाब को हमारे उत्तर भारत के कई  जायकों का दाता माना जा सकता है। लेकिन जो बात अमृतसर के जायके में है, वो और कहीं नहीं। अमृतसर में खाने की बात हो तो वो गुरु के लंगर के बिना शुरू नहीं हो सकती। हर सैलानी के पहले कदम उसी ओर पड़ते हैं। स्वर्ण मंदिर के कड़ाह प्रसाद और लंगर को चखे बिना बात आगे नहीं बढ़ती।



कतार लगाकर कड़ाह प्रसाद लेना, या सबके साथ पंगत में बैठकर लंगर चखना केवल स्वाद की बात नहीं है। उसका असली स्वाद तो उस माहौल व ऐतिहासिक परंपरा में है। अमृतसर से मिले जो स्वाद बाकी देश ने भी सर-आंखों पर रख लिए उनमें सबसे पहला मक्की की रोटी और सरसों का साग है। लेकिन चूंकि यह सर्दियों का खाना है, इसलिए इसके लिए तब तक इंतजार करना होगा। लेकिन बाकी सालभर आप अमृतसरी कुल्छे व छोले जरूर खा सकते हैं। उसके बाद गिलास भरकर ठंडी लस्सी आपको भोजन में तृप्ति का अहसास ला देती है। दरअसल मक्खन के साथ आलू के परांठे खाने और उन्हें लस्सी से हजम करने का स्वाद भी हमें अमृतसर से ही मिला है। फिरनी यहां का अलग जायका है और अक्सर शाम के खाने का अंत आप उससे करना चाहेंगे।

                                                        जो लोग मांसाहारी हैं वे यहां के कीमा नान के साथ मिलने वाले तंदूरी चिकन का स्वाद याद रखेंगे। अमृतसरी नान और बटर चिकन भी उतना ही प्रसिद्ध है। हालांकि कई दुकानें हैं जो अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन ठेठ जायके के लिए स्वर्ण मंदिर के आसपास की दुकानों या ढाबों पर जाएं। बड़ी होटलों में वह बात नहीं बनेगी।


कैसे जाएं
: अमृतसर अब अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है और दिल्ली से यहां के लिए सीधी उड़ानें हैं। नई दिल्ली से अमृतसर के लिए रोजाना स्वर्ण शताब्दी है। बाकी शहरों से भी अमृतसर के लिए कई ट्रेनें हैं। इन सबके अलावा जीटी रोड पर स्थित अमृतसर का सफर आप बस से या अपने वाहन से भी कर सकते हैं।


किड्स: दार्जिलिंग

मस्ती भरी गुदगुदाती छुट्टियां

दार्जिलिंग वैसे भी देश के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है, लेकिन परिवार के साथ खास तौर पर बच्चों को लेकर आनंद मनाने के लिए भी यह खासी मजेदार जगह है। यहां थोड़ी मस्ती भी हो जाएगी, थोड़ा घूमना भी, थोड़ा एडवेंचर और थोड़ा सीखना भी। दार्जीलिंग देश की उन गिनी-चुनी जगहों में से एक है जहां अब भी छोटी लाइन की रेलगाड़ी चलती है। इनके छोटे आकार के चलते ही उन्हें टॉय ट्रेन कहा जाने लगा है। दार्जीलिंग की टॉय ट्रेन बॉलीवुड की कई फिल्मों में रंग जमा चुकी है- आराधना से लेकर बर्फी तक।


छोटी लाइन की गाड़ी बच्चों के साथ बड़ों के लिए भी बड़ी आकर्षक होती है। दार्जीलिंग के करीब
 पहुंचते-पहुंचते तो उससे दिखने वाला नजारा भी बेहद शानदार हो जाता है। घूम स्टेशन के बाद पटरी पर लूप बना हुआ है। वहां खूबसूरत बगीचा और सामने कंचनजंघा समेत हिमालय की बर्फीली चोटियां देखने के लिए बड़ी सी दूरबीन भी है। दार्जीलिंग में एक छोटा सा जू भी है। बच्चों को उसमें भी बहुत मजा आएगा। दार्जीलिंग की चाय तो बेहद मशहूर है ही। बच्चों को पास के किसी चाय बागान में ले जाकर चाय बनने की सारी प्रक्रिया की जानकारी दी जा सकती है। यह उनके लिए नई जानकारी देने वाला होगा। बच्चे रोमांच प्रेमी हों तो दार्जीलिंग के आसपास कई छोटे-छोटे व आसान ट्रैक भी हैं। उन्हें वहां भी ले जाया जा सकता है।


कैसे जाएं: दार्जीलिंग के लिए बड़ी लाइन का सबसे निकट का रेलवे स्टेशन दिल्ली-गुवाहाटी रेलमार्ग पर न्यू जलपाईगुड़ी है।  वहां से सिलीगुड़ी महज चार किलोमीटर दूर है। सिलीगुड़ी से ही दार्जीलिंग के लिए  छोटी लाइन की ट्रेन या बसें-टैक्सी मिलेंगी। हवाई यात्रा के लिए बागडोगरा सबसे निकट का हवाई अड्डा है।  वहां से सड़क मार्ग से दार्जीलिंग जाना होगा।


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डाइविंग: लक्षद्वीप

समुद्र की गहराइयों में

लक्षद्वीप यानी एक लाख द्वीप। ऐतिहासिक रूप से इस नाम के पीछे जो भी वजहें रही हों, भारत के दक्षिण-पश्चिमी सिरे से लगभग  200 से 440 किलोमीटर की दूरी में स्थित इस द्वीप समूह में 39 छोटे-बड़े  द्वीप हैं। ये द्वीप मालदीव के उत्तर की ओर अरब सागर में हैं।



अमीनदीव, लक्कादीव और मिनिकॉय द्वीपों को भारत के कोरल द्वीप भी कहा जाता है। इनमें से ज्यादातर के तटों के पास समृद्ध कोरल रीफ हैं। खूबसूरत होने के बावजूद इन्हें ज्यादा सैलानी नहीं मिल पाए क्योंकि कुछ साल पहले तक यहां सैलानियों के लायक ढांचा व इंतजाम नहीं थे। लेकिन अब स्थिति बदल रही है।  सारे द्वीपों के आसपास लैगून व कोरल रीफ होने की वजह से ये वाटर स्पोट्र्स के लिए बेहद माफिक हैं।

                                                    कोई हैरत नहीं कि आनेवाले समय में लक्षद्वीप का डंका वाटर स्पोट्र्स के लिए दुनियाभर के सैलानियों में बजने लगे। यहां कयाकिंग, कैनोइंग, याटिंग, स्नोर्कलिंग, विंड सर्फिंग, वाटर स्कीइंग और स्कूबा डाइविंग का आनंद लिया जा सकता है। कई ऑपरेटर वहां ये सब कराने लगे हैं। पानी के नीचे जाकर वहां के जलजीवन का नजारा लेना अपने आप में बेहद रोमांचक है।


कैसे पहुंचे: केरल में कोच्चि से लक्षद्वीप के लिए पानी के जहाज चलते हैं। इस सफर में 14 से 20 घंटे लग जाते हैं। इसके अलावा कोच्चि से लक्षद्वीप के अगाती हवाई अड्डे के लिए भी सप्ताह में छह दिन उड़ानें हैं। अगाती से कावरती व बंगाराम के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं हैं।

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तीर्थ: चारधाम

जहां आस्था तकलीफ नहीं देखती

भारत में तीर्थ हर कोने में हैं। लोग पूरी श्रद्धा के साथ इन जगहों पर जाते भी हैं। भारत में पर्यटन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की ही है। यह भी बड़ी रोचक बात है कि भारत में ज्यादातर धार्मिक यात्राएं बेहद कष्टसाध्य हैं। लेकिन उससे भी लोगों का उत्साह कम नहीं होता। देश की सबसे प्रमुख तीर्थयात्राओं में चारधाम यात्रा भी एक है।


वैसे तो देश के चार बड़े धाम चारों दिशाओं में हैं। लेकिन उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री की यात्रा को भी प्रचलित अर्थों में चारधाम यात्रा ही माना जाता है। ये चारों स्थान हिमालय पर्वतमाला में ऐसे स्थानों पर हैं जहां साल के काफी समय बर्फ ही जमा रहती है।
 इसलिए यहां की यात्रा तभी संभव हो पाती है जब बर्फ कम होने पर रास्ते खुलते हैं। पारंपरिक रूप से बद्रीनाथ व केदारनाथ के पट खुलने के बाद यात्रा आरंभ होती है।

यात्रा के ज्यादातर दिन उत्तर भारत में  मानसूनी बारिश वाले होते हैं, इसलिए भी यह यात्रा तीर्थयात्रियों के लिए कष्टदायक हो जाती है। फिर भी लाखों लोग हर साल चारधाम यात्रा पर जाते हैं।

कैसे जाएं: चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ तक बसें व कारें जाती हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ पहुंचने में पूरा दिन लग जाता है। द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ के लिए गौरीकुंड से 14 किलोमीटर का पैदल मार्ग है। गंगोत्री ऋषिकेश से 265 किलोमीटर दूर है और वहां तक बसें व कारें जाती हैं। हां, आगे गोमुख के लिए पैदल जाना होगा। इसी तरह ऋषिकेश से 222 किलोमीटर दूर यमुनोत्री के लिए धरासू बैंड से रास्ता अलग फटता है। फूल चट्टी के बाद यमुनोत्री के लिए आठ किलोमीटर का ट्रैक है।


(शेष दूसरी किश्त में....)

Comments ( 1 )

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