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जलवायु परिवर्तन का अर्थ लंबी अवधि के लिए धरती के तापमान और वायु में परिवर्तन के संदर्भ में लगाया जाता है । ये कुदरत के निरंतर क्रमविकास का हिस्सा है और हर भूवैज्ञानिक युग में ये होता रहा है । हांलाकि ये प्राकृतिक क्रिया है फिर भी इसमें तेजी लाने के लिए मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं । प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन,ग्रीन हाउस गैसों का असर,धरती के हरित आवरण में कमी जैसी घटनाएं खासकर 20 वीं शताब्दी के अंतिम आधे हिस्से में ज्यादा देखने को मिलीं और ये लगातार जारी भी हैं ।



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जलवायु परिवर्तन पर बने अंतर सरकारी पैनल यानि IPCC ने साल 2001 में एक अनुमान लगाया था जिसके अनुसार साल 2030 तक हमें औसतन 2 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान वृद्दि देखने को मिल सकती है जबकि साल 2090 तक ये वृद्दि 4 डिग्री तक पहुंच सकती है । तापमान की ये अनुमानित वृद्धि औद्योगिकीकरण से पहले के औसत तापमान से तुलना करके बतायी गई है । साल 1992 के रियो घोषणापत्र के बाद जलवायु परिवर्तन एक गंभीर सरोकार का विषय बन कर उभरा है । प्राकृतिक तंत्र बड़े नाजुक होते हैं और जलवायु के मामूली से परिवर्तन को ही बर्दाश्त कर पाते हैं ।



इन प्राकृतिक तंत्रों को हम ग्लेशियरों , उष्णकटिबंधीय जंगलों ,सदाबहार वनों , अल्पाइन पारिस्थितिक तंत्र के रूप में देखते हैं । ये ज्यादा बड़े जलवायु परिवर्तन को सहन नहीं कर पाते और इनको स्थायी क्षति पहुंच जाती है । उत्तराखंड भी ऐसे जलवायु परिवर्तनों से अछूता नहीं है । वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि उत्तराखंड में जाड़े और गर्मी के मौसमों के औसत तापमान में मामूली बढ़ोत्तरी हुई है । ऊंचे पर्वतीय इलाके जैसे चमोली का जोशीमठ और उत्तरकाशी के गंगोत्री इलाके जहां कभी पंखों और रेफ्रिजरेटर जैसे उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन अब यहां ये उपकरण आसानी से इस्तेमाल होते देखे जा रहे हैं ।



साल 2006 का एक वैज्ञानिक अध्ययन इन इलाकों में पंखे और फ्रिज जैसे उपकरणों के बढ़ते इस्तेमाल को तापमान वृद्धि का प्रमाण मानता है । साल 2000 का एक अध्ययन ये दावा करता है कि फरवरी माह का औसत तापमान बढ़ा है जबकि मॉनसून के सीजन की अवधि घटी है । इतना ही नहीं जो कभी हिमपात वाले इलाके हुआ करते थे वहां अब हिमपात की जगह वर्षा होते देखी जा रही है । भूस्खलन , हिमस्खलन और चट्टानों के टूटकर गिरने की घटनाएं राज्य में बढ़ी हैं । इन सारी घटनाएं के पीछे प्राकृतिक और मानवनिर्मित गतिविधियां प्रमुख कारण हैं ।

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