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हम जब सुबह जगते हैं तब से लेकर दिन भर और रात को सोने से समय तक हम कई सारी सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे होते हैं। चाहे वो मोबाइल फोन हो, घर के किचन में इस्तेमाल किया जा रहा खाने का सामान हो या बाकी घरेलू चीजें । हम हर जगह कोई न कोई खरीदी हुई चीज का इस्तेमाल करते हैं। मान लें कि हमारा मोबाइल फोन खरीदने के हफ्ते भर के भीतर काम करना बंद कर दें तो हम क्या करेंगे ? हम सोच में पड़ जाते हैं कि कैसी बला आन पड़ी, अभी हमने फोन खरीदा और ये खराब हो गया। लेकिन इससे घबड़ाने की जरुरत नहीं है। सबसे पहले तो जहां से फोन खरीदा है वहां जाकर अपने खरीद की रसीद दिखायें और अपनी शिकायत करें। अगर दुकानदार या मोबाइल कंपनी आपके फोन की कमी को दूर नहीं करता तो आप बेहिचक उपभोक्ता न्यायालय की शरण लें।



उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(d) (i) और (ii) में साफ कहा गया है कि अगर आप पैसे से कोई वस्तु खरीदते हैं तो आप उपभोक्ता माने जाएंगे और अगर कोई उपभोक्ता खरीदे हुए सामान की सर्विस में खराबी पाता है तो वो उसकी शिकायत उपभोक्ता फोरम में कर सकता है।

अब आइए आपको बताते हैं कि किन मामलों की शिकायत कहां की जाए। अगर आपने अपनी शिकायत में 20 लाख रुपये तक का हर्जाना मांगा है तो आपको जिला फोरम में शिकायत करनी होगी। अगर ये राशि एक करोड़ से कम है तो इसके लिए राज्य उपभोक्ता आयोग के पास शिकायत करनी होगी। इसके अलावा अगर ये राशि एक करोड़ रुपये से अधिक है तो राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। हां एक बात और कि अगर आपने जिला फोरम में शिकायत दर्ज नहीं की है और आपके द्वारा मांगी गई हर्जाने की रकम एक करोड़ तक है तो आप सीधे राज्य आयोग में शिकायत कर सकते हैं। इसी प्रकार अगर आपकी क्षतिपूर्ति की मांग एक करोड़ से ज्यादा की है तो आप सीधे राष्ट्रीय आयोग में शिकायत कर सकते हैं।


शिकायतकर्ता कौन ?



उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (b) (i) से लेकर (b) (v) तक में कहा गया है कि शिकायत करने वाला उपभोक्ता या उपभोक्ताओं के हित में काम करने वाली संस्थाएं या राज्य या केंद्र सरकार या एक से ज्यादा उपभोक्ता जिनके हित समान हों। अगर उपभोक्ता की मौत हो गई हो तो उसका कानूनन उत्तराधिकारी भी शिकायत दर्ज कर सकता है।


लेखक का संपर्क e-mail: sanjay_jour@yahoo.co.in


शिकायत करने का स्थान



आम लोगों के मन में ये सवाल हमेशा उठता है कि शिकायत कहां करें ? क्योंकि अक्सर  हम जो चीजें खरीदतें हैं उसके रैपर पर लिखा रहता है कि विवाद होने की स्थिति में दिल्ली, मुंबई या कोलकाता न्यायालय के अधीन कोई भी शिकायत मान्य होगी। लेकिन उस रैपर के लिखने भर से ऐसा कुछ नहीं होता। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 11 में साफ कहा गया है कि जिनके खिलाफ वाद दायर किया जा रहा है वो या उनमें से कोई एक अगर उस उपभोक्ता न्यायालय की सीमा में आता है तो उस न्यायालय में शिकायत की जा सकती है। अब यहां सवाल ये है कि अगर मुंबई की कोई कंपनी साबुन बनाती है और उपभोक्ता इंदौर का है जिसे साबुन की जगह रैपर में कुछ और मिलता है तो क्या होगा ? ऐसे में चूंकि आपने खरीदारी इंदौर से की है लिहाजा आप सिविल प्रोसिजर कोड के तहत इंदौर के जिला फोरम में शिकायत कर सकते हैं।

 

शिकायत करने की तिथि के 21 दिन के अंदर जिला फोरम ये बताता है कि उसकी शिकायत स्वीकार कर ली गई है कि नहीं। उसके बाद उपभोक्ता न्यायालय विपक्षी पार्टी को नोटिस देकर बुलाती है और उससे जवाब मांगती है। उसके जवाब देने के बाद उपभोक्ता अपने पक्ष में सबूत देता है। उपभोक्ता न्यायालय शिकायतकर्ता और विपक्षी पार्टी दोनों को अपनी बात रखने का भरपूर मौका देती है ताकि मामले का निपटारा करने में कोई चूक न हो।

अन्य उपयोगी लिंक - http://ncdrc.nic.in/


उपभोक्ता के लिए बरती जाने वाली सावधानियां

1.    उपभोक्ता खरीदी या भुगतान की पक्की रसीद जरुर रखें।
2.    अगर बैंक खाते से लेन-देन हुआ है तो बैंक स्टेटमेंट दिखाएं।
3.    अगर कोई सेवा ली है तो उसकी भी रसीद लेना न भूलें।
4.    दुकानदार से सामान खरीदते समय उससे रसीद लें और उसे संभालकर रखें।
5.    ट्रेन, बस या टैक्सी की यात्रा कर रहे हैं तो उससे संबंधित टिकट जरुर दिखाएं।
6.    ऑनलाइन कंपनियों से खरीदारी करते समय उसका इनवॉयस संभालकर रखें।
7.    बैंक के सेवा में कोई गड़बड़ी है तो उससे संबंधित दस्तावेज जरुर दिखाएं।
8.    इंश्योरेंस क्लेम के लिए सारी रसीदें संभालकर रखें ताकि उन्हें कोर्ट में दिखाया जा सके।
9.    किसी सेवा के एग्रीमेंट संबंधी करार की ओरिजिनल प्रति दिखाएं।
10.    कहीं शिकायत दर्ज करा रहे हैं तो उसकी सर्विस रिक्वेस्ट नंबर जरुर लें ताकि उसको बताकर आप अपने दावे को पुख्ता कर सकें। जैसे कि इंटरनेट, मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर या बैंक से संबंधित सेवाएं लेते समय सर्विस रिक्वेस्ट नंबर जरुर लें।


 

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