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प्राचीन साहित्य में भौगोलिक ज्ञान के सूत्र
ज्योतिषीय गणनाओं को करने के लिए अक्षांशों और देशान्तरों की जानकारी का होना अति आवश्यक होता है । बिना इन्हें जाने गणना का प्रारंभ करना तक संभव नहीं होता । प्राचीन भारतीयों को भारत के प्रमुख स्थानों के देशान्तरों एवं अक्षांशों की जानकारी हुआ करती थी । भारतीयों का भौगोलिक ज्ञान यद्पि विकसित नहीं था फिर भी एक आम भारतीय यात्रियों और सौदागरों के माध्यम से अपने आस-पास के जगत के बारे में जानकरी रखता था । साहित्यकारों ने भी अपनी लेखनी से लोगों के भौगोलिक ज्ञान में वृद्धि की थी ।
कालिदास को जितना एक साहित्कार के रूप में जानते हैं संभवत: उतना एक भूगोलवेत्ता के रूप में नहीं जानते । उनके भौगोलिक ज्ञान की गहराई जानने के लिए हमें उनके द्वारा रचित मेघदूत का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ।
"उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्
वर्ष यद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:"
अर्थात् समुद्र के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में जो स्थित है वो भारत देश है तथा वहां की संतानें भारती हैं ।
भौगोलिक ज्ञान के क्षेत्र में भारतीयों की उच्चतम् उपलब्धि उनका गुरुत्वाकर्ण का ज्ञान था । महाभारत के शांति और अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह सर शैय्या से युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए वर्णित हैं ।
अपने उपदेश के क्रम में जब पितामह युधिष्ठिर को पृथ्वी के गुणों के संबंध में बताते हैं तो वे गुरुत्वाकर्षण को पृथ्वी का एक गुण कहते हुए वर्णित किये गए हैं । महाभारत की रचना न्यूटन के काल से कम से कम एक हजार वर्ष पूर्व की गई थी ।
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Comments ( 3 )
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डॉ अशोक दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤
👌👌 गहन अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ - - ðŸ™ðŸ™
News For GlobeThanks a lot dr.ashok dixit ji for your kind words
Shikha singhकà¥à¤› नया और अलग लेख। बेहतरीन
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