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प्राचीन भारत की वैज्ञानिक एवं तकनीकि सफलताओं की चर्चा का समापन आयुर्वेद की चर्चा के बिना संभव नहीं हो सकता । भारतीयों का आयुर्वेद ज्ञान काफी समृद्ध हुआ करता था । प्राचीन भारत में एक से बढ़कर एक आयुर्वेदाचार्यों ने जन्म लिया था। इनमें से जीवक , चरक , सुश्रुत , वाग्भट्ट ,धन्वंतरि आदि प्रमुख थे ।




काल क्रम के अनुसार जीवक प्राचीन भारत के सबसे पहले इतिहास प्रसिद्ध वैद्य थे ।
जीवक ने तक्षशिला विश्व विद्यालय से आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की थी तथा अपने आयुर्वेद ज्ञान के कारण शीघ्र ही इतिहास प्रसिद्ध हो गए । जीवक मगध के राजा बिंबसार के राज्य वैद्य थे । जीवक ने अपने समकालीन कई प्रसिद्ध लोगों की चिकित्सा की थी । जीवक ने महात्मा बुद्द एवं अवन्ति के राजा प्रद्योत को भी रोग मुक्त किया था । जीवक इतने योग्य वैद्य थे इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उनकी फीस 1600 कार्षापण हुआ करती थी ।




                    आयुर्वेद के दूसरे प्रसिद्ध विद्वान चरक थे । चरक कनिष्क के दरबार में रहते थे तथा उन्हें चरक संहिता नामक आयुर्वेद ग्रंथ की रचना का श्रेय प्राप्त है । चरक के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है कि जब चरक अपनी आयुर्वेद की शिक्षा पूरी कर चुके तो उन्होंने अपने गुरु से गुरुदक्षिणा मांगने को कहा । गुरु ने गुरुदक्षिणा में यह मांगा कि कोई ऐसी जड़ी-बूटी या वनस्पति लाकर मुझे दो जिसका कोई औषधीय प्रयोग न होता हो ।



चरक ने गुरुदक्षिणा पूरी करने के उद्देश्य से काफी भ्रमण किया तथा 6 महीनों बाद गुरु के पास खाली हाथ लौटे । चरक गुरु दक्षिणा न दे पाने की वजह से काफी लज्जित महसूस कर रहे थे जबकि गुरु चरक के खाली हाथ लौटने से बेहद प्रसन्न थे और फक्र महसूस कर रहे थे । गुरु ने चरक से कहा कि उनकी दी गई शिक्षा सार्थक हुई तथा तुम्हारा खाली हाथ लौटना साबित करता है कि तुम्हें सभी वनस्पतियों का औषधीय महत्व व प्रयोग मालूम है। अत: मेरे द्वारा दी गई शिक्षा सार्थक हुई । यही मेरी गुरुदक्षिणा है । इस प्रकार चरक गुरु से आशीर्वाद लेकर गुरु आश्रम से विदा हुए ।

                                    4थी शताब्दी में सुश्रुत नामक एक महान शल्य चिकित्सक हुए थे । सुश्रुत विश्व के पहले प्लास्टिक सर्जन थे । सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा पर एक पुस्तक सुश्रुत संहिता लिखी थी ।



सुश्रुत के द्वारा चलाई गई शल्य चिकित्सा की पद्धति से प्राचीन भारतीय नाक,कान, त्वचा आदि की सर्जरी कर सकने में सक्षम थे । सुश्रुत की पद्धति पर आधारित एक ऑपरेशन को होते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी ने भी देखा था । इस ऑपरेशन का विवरण कंपनी के अधिकारी ने अपनी डायरी में भी दर्ज किया था । यह घटना सुश्रुत के समय से काफी बाद की अर्थात् अट्ठारहवीं शताब्दी की है । प्राचीन भारतीयों को प्रसव कालीन शल्य कर्म भी ज्ञात था । ये सुश्रुत ही थे जिन्होंने सबसे पहले यह बताया था कि कर्ण भेद या कान छेदन संस्कार कराने से हार्निया या हाइड्रोसील जैसे रोगों की संभावना नहीं रहती है ।

                              धन्वंतरि नामक आयुर्वेदाचार्य़ चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के दरबार में रहा करते थे । वे चंद्रगुप्त के 9 रत्नों में से एक थे ।



वाग्भट्ट,माधवकर,नागार्जुन,चक्रपाणिदत्त,सुरेश्वर,पाल्काप्य,अमृत सागर,सारंगधर आदि प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय आयुर्वेदाचार्य थे । इन विद्वानों ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं थीं । इनमें वाग्भट्ट लिखित "हस्त्यायुर्वेद" हाथियों की बीमारियों पर लिखी गई वेटनरी साइंस की पुस्तक है । इसी प्रकार घोड़ों की बीमारियों पर लिखी गयी पुस्तक का नाम "शालिहान्न" था। इस पुस्तक के लेखक परमार वंश के राजा भोज थे,जिन्हें आयुर्वेद का भी ज्ञान था । माधवकर ने "रोग विनिश्चय" नामक पुस्तक की रचना की थी जबकि "रस रत्नाकर" के रचयिता नागार्जुन थे । चक्रपाणिदत्त द्वारा लिखित "चिकित्साशास्त्र" आयुर्वेद की एक उत्कृष्ट रचना है । सुरेश्वर ने "लौह पद्धति" नामक आयुर्वेद ग्रंथ लिखकर अपने ठोस आयुर्वेद ज्ञान का लोहा सभी को मनवा दिया ।




अमृत सागर तथा सारंगधर नामक विद्वानों ने अपने ही नामों पर अपने द्वारा रचित पुस्तकों के नाम रखे थे । ये पुस्तकें भी इन लेखकों के आयु विज्ञान संबंधी विशद ज्ञान की झांकी प्रस्तुत करती हैं ।

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Comments ( 2 )

  • ?????? ?????

    आपका लेखन हमारे अतीत के गौरवशाली दिनों को न केवल परिभाषित करता है, अपितु यह सिद्ध भी करता है कि आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में हमारी जानकारी अद्भुत थी।जब विश्व अभी जाग रहा था, तब हमारे ऋषि महर्षि मार्गदर्शन कर रहे थे।बेहतरी पोस्ट के लिए साधुवाद!

  • news for globe

    ashutosh sharma ji thanks a lot for your kind words.

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