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300 वर्षों के इतिहास को समेटे पिथौरागढ़ की महत्वपूर्ण धरोहर लंदन फोर्ट जल्द ही नए स्वरूप में नजर आएगा । 18 वीं सदी में इस किले का निर्माण गोरखा राजाओं द्वारा किया गया था । लगभग 135 वर्षों तक इसमें तहसील का कामकाज संचालित होने से इतिहास व कई रहस्यों को समेटे होने के बावजूद यह धरोहर गुमनाम सी हो गई थी।

ब्रिटिश परगना ऑफ सोर एंड जोहार के नाम से जाना जाता था पिथौरागढ़

                                                            अब इस किले का संरक्षण कर ऐतिहासिक दस्तावेजों का संग्रहालय बनाया जाएगा । बाउलीकीगढ़ नामक इस किले का निर्माण 1791 में गोरखा शासकों ने किया था । नगर के ऊंचे स्थान पर 6.5 नाली क्षेत्रफल वाली भूमि में निर्मित इस किले के चारो ओर अभेद्य दीवार का निर्माण किया गया था । इस दीवार में लंबी बंदूक चलाने के लिए 152 छिद्र बनाए गए हैं ।यह छिद्र इस तरह से बनाए गए हैं कि बाहर से किले के भीतर किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता । किले के मचानों में सैनिकों के बैठकर व लेटकर हथियार चलाने के लिए विशेष रूप से स्थान बने हैं । किले की लंबाई 88.5 मीटर और चौड़ाई 40 मीटर है । 8.9 फीट ऊंचाई वाली इस दीवार की चौड़ाई 5 फीट 4 इंच है । पत्थरों से निर्मित इस किले में गारे का प्रयोग किया गया है । किले में प्रवेश के लिए दो दरवाजे हैं ।

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http://uttarakhandtourism.gov.in/



                                                           बताया जाता है कि इस किले में एक गोपनीय दरवाजा भी था । लेकिन अब यह कहीं नजर नहीं आता । किले के अंदर लगभग 15 कमरे हैं । किले का मुख्य भवन दो मंजिला है । भवन के मुख्य भाग में बने एक कमरे की बनावट नेपाल में बनने वाले भवनों से मेल खाती है । कहा जाता है कि इस किले में गोरखा सैनिक और सामंत ठहरते थे । इस किले में एक तहखाना भी बनाया गया था । इसमें कीमती सामना और असलहे रखे जाते थे । किले में बंदी गृह और न्याय भवन भी निर्मित था । बताया जाता है कि किले के अंदर कुछ गुप्त दरवाजे और रास्ते भी थे । इनका प्रयोग आपातकाल में किया जाता था । किले के भीतर ही सभी सुविधाएं मौजूद थीं । किले के भीतर एक कुंआ भी खोदा गया था । एक व्यक्ति के इसमें डूब कर मर जाने के बाद इसको बंद कर दिया गया और उस पर पीपल का एक पेड़ लगा दिया गया । 

1815 में अंग्रेजों ने किले का नाम रख दिया लंदन फोर्ट
                                              
संगोली की संधि के बाद 1815 में कुमाऊं में औपनिवेशिक शासन स्थापित हो गया और अंग्रेजों ने इस किले का नाम बाउलीकीगढ़ से बदलकर लंदन फोर्ट कर दिया ।  1881 ईस्वी में इस किले में तहसील का कामकाज शुरु हुआ । वर्ष 1910-20 के बीच में अंग्रेजों ने किले की मरम्मत कराई । इसके बाद इस किले को उपेक्षित छोड़ दिया गया । आजादी के बाद तहसील प्रशासन ने अपने स्तर से परिसर में नए भवनों का निर्माण किया । इस निर्माण में किले के वास्तविक स्वरूप को नुकसान पहुंचा ।
                                                           पिछले वर्ष पर्यटन विभाग द्वारा इस ऐतिहासिक किले के सुधार का प्रस्ताव शासन को भेजे जाने के बाद 4.5 करोड़ रूपये की स्वीकृति मिली है । किले से तहसील कार्यालय को खाली कराने के बाद इसके सुधारीकरण का कार्य शुरू हो गया है । किले की मरम्मत और रखरखाव के दौरान इसके अंदर के गुप्त दरवाजे और तहखानों का रहस्य भी खुल सकता है ।                                                                                                                          
 इस किले को ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रहालय बनाए जाने की योजना है । माना जा रहा है कि दशकों तक गुमनाम रहा यह किला इतिहासकारों और पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा । पर्यटन के क्षेत्र में भी पिथौरागढ़ को नई पहचान मिलेगी । 

शिलापट में हैं प्रथम विश्व युद्ध का उल्लेख
                                                                              

                                                       पिथौरागढ़ में स्थित किले के भीतर एक शिलापट्ट लगा है । इसमें प्रथम विश्व यु्द्ध में प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों का उल्लेख किया गया है । शिलापट में लिखा गया है कि परगना सोर एंड जोहार से विश्व युद्ध में 1005 सैनिक शामिल हुए थे जिनमें से 32 सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये ।     



Comments ( 2 )

  • pawan

    acchi jankari

  • Shikha singh

    रोचक जानकारी, जाने कितनी धरोहरें ऐसी हैं जिनके बारे में लोगों को पता तक नहीं। इस लेख के माध्यम से लंदन फोर्ट के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया।

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